श्री नाकोड़ा जैन कांफ्रेस पर एक नजर

*श्री नाकोड़ा जैन कांफ्रेस* भैरव भक्तो का समुदाय ग्रुप है। यह *नाकोड़ा जैन कांफ्रेस किसी भी तरह से कोई शुल्क आर्थिक लेनदेन इत्यादि नही लेता है, न ही कोई गुप्त एजेंटा और राजनितिक महत्वकांक्षा जैसा कोई मकसद को जगह नही है। कांफ्रेस भैरव की उपासना भक्ति साधना का एक फोरम है। इसमें राजनितिक विवाद और मनभेद को कतई स्थान नही है। *नाकोड़ा भैरव के परम् वरिष्ठ उपासको* का मार्गदर्शन लेता है और उनके अद्वितीय सहयोग का आभारी है। कांफ्रेस के संरक्षक श्री प्रकाश जी सुराणा ,, का अद्वितिय सहयोग मिलता आ रहा है। कांफ्रेस परिवार विस्तार के लिए राजस्थान अध्यक्ष श्री कमल जी हिंगड़ , महाराष्ट्र अध्यक्ष श्री मोहन लाल जी जैन, गुजरात अध्यक्ष श्रीउतम जी जैन कार्यकारी अध्यक्ष राकेश जी कोठारी, कांफ्रेस के उपाध्यक्ष श्री गुलाब जी भंडारी (पाली)श्री प्रवीण जी जोशी(रायपुर)सौ.पलीता जी कर्णावट राष्ट्रीय महामन्त्री श्री सिद्धार्थ जी कोठारी महिला अध्यक्ष सीमा जी भंडारी महामन्त्री स्मिता सांखला की भूमिका सरहानीय और वन्दनीय है। *श्री नाकोड़ा जैन कांफ्रेस* की राष्ट्रीय और राज्यवार इकाइयां भैरव भक्ति उपासना साधना और समाजिक समरसता के पथ पर अग्रसर है। तमिलनाडू राज्य की जिम्मेदारी आर.चन्द्रशेखर जी पगारिया पंजाब अध्यक्ष गोरव जी जैन कर्नाटक इकाई अध्यक्ष पुखराज जी बेताला भी सक्रियता से जुड़ अभियान को आगे बढ़ रहे है। राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य श्री सुशील जी जैन बंगलोर, श्री विक्रम जी शाह , अशोक जी बावेल,सुशील जैन नालछा वाले, ज्योत्स्ना सांकला , निर्मल जी सखलेचा तेजमल जी सराफ ,सभी पधाधिकारी की मेहनत और भैरव भक्ति उपासना भैरव भक्तो के एकीकरण को नई ऊर्जा दे रही है। आपकी भक्ति ही कांफ्रेस की शक्ति और कुबेर का खजाना है। श्री नाकोड़ा जैन कांफ्रेस एक डायरेक्ट्री प्रकाशित करने जा रहा है जिसमे भैरव भक्ति , पूनम मण्डल नाकोड़ा पैदल संघ , अनवतरनाकोड़ा यात्रा करने वाले भक्तो का परिचय और देश के प्रमुख शहरों में स्थित नाकोड़ा भैरव मन्दिरो का उल्लेख प्रकाशित किया जा रहा है। यह डायरेक्ट्री निशुल्क होगी। * नाकोड़ा जैन कांफ्रेस की डायरेक्ट्री का कुशल सम्पादन श्री पार्थ जी जैन सम्पादन यश बोथरा ऋषभ मेहता की टीम मिलकर कर रहे है। इस में अब तक 10000 से अधिक नाकोड़ा भैरव भक्तो का डाटा एकत्रित हो गया है। akshay designer.jain@gmaill.com पर जानकारियां एकत्रित की जा रही है। आप भैरव भक्ति से जुड़े रहे ....सभी भक्तो की भावनाओ को वन्दन । आपके सुझाव और सहयोग की अपेक्षा आपका *अक्षय जैन* *राष्ट्रीय अध्यक्ष* *श्री नाकोड़ा जैन कांफ्रेस*

अनुमोदना

श्री नाकोडाजी भैरव चालिसा पठन का अनुपम , अलौकिक आयोजन श्री नाकोडा जैन कान्फ्रेंस के माध्यम से राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अक्षयजी जैन इंदौर ने शुरु कीया जो आज पुरे देश मे जोर शोर से प्रगति की दिशा मे आगे बढ रहा है श्री अक्षयजी की भैरव भक्ति से प्रेरीत होकर मै भी इस कान्फ्रेंस का बतौर संरक्षक हिस्सा बन गया हुं ये कान्फ्रेंस कोइ राजनितिक , व्यवसायिक या घरेलु संघटन नही है और न ही इस कान्फ्रेंस से जुडने के लिये कोई रुपयो का लेन देन है । शुल्क सिर्फ नियमित भैरव चालिसा का पठन है श्री नाकोडा जैन कान्फ्रेंस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अक्षयजी जैन की भैरव चालिसा के पठन और पाठन की स्वच्छ और निर्मल निःस्वार्थ भावना से ही आज मै भी नियमित चालिसा का पठन कम से कम सात बार कर रहा हु सर्व प्रथम हमने इंदौर मे अक्षयजी द्वारा आयोजित भैरव चालिसा अनुष्ठान मे भाग लिया था जहां नाकोडाजी के तीन ट्रस्टी हाजिर थे । तीनो ट्रस्टीयो की ये भावना जगी कि एैसा अनुष्ठान नाकोडाजी दादा के दरबार मे हो जिसको अक्षयजी ने बडे ही सुनियोजित ढंग से पालना कर ये अनुष्ठान नाकोडाजी मे करवाया । उस अनुष्ठान दरम्यान अक्षयजी ने संकल्प लिया कि देश के कोने कोने मे हर महिने भैरव चालिसा अनुष्ठान का आयोजन करेंगे एवम् सभी भैरव भक्तो को एकत्रित करेंगे आज ये अनुष्ठानों की शुरुआत हो चुकी है जो हर महिने अलग अलग शहरो मे हो रहे है एवम् करीब दस हजार से ज्यादा भैरव भक्त इस कान्फ्रेंस से जुड गये है जिसकी फीस नियमित भैरव चालिसा का पठन है हर घर मे हो भैरव चालिसा अब ये संकल्प हम सब का होना चाहिये जय जिनेन्द्र जय श्री नाकोडा पार्श्वनाथजी री सा जय श्री नाकोडा भैरुजी री सा रणवीर आनन्दराजजी गेमावत बाली/मुंबई ट्रस्टी : श्री नाकोडाजी तीर्थ

नाकोड़ा तीर्थ का इतिहास

नाकोड़ा जैन तीर्थ अधिष्टायक श्री नाकोड़ा भैरव देव : इतिहास कथा संकलन

श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ जैन तीर्थ के अधिष्टायक देव हाजरा हुजूर श्री नाकोड़ा भैरव देव के इतिहास की महत्त्वपूर्ण जानकारी :
श्री नाकोडा भैरव देव का स्मरण कर पढ़ना प्रारम्भ करें
भैरव का मूल स्वरुप
भैरव एक अवतार हैं।उनका अवतरण हुआ था।वे भगवान शंकर के अवतार हैं। भैरव देव के दो रूप - 1) काला भैरव या काल भैरव (उनके रंग के कारण नाम काला भैरव पड़ा)।जिसने काल को जीत लिया वो काल भैरव हैं।आधी रात के बाद काल भैरव की पूजा-अर्चना की जाती है। श्री काल भैरव का नाम सुनते ही बहुत से लोग भयभीत हो जाते है और कहते है कि ये उग्र देवता है। लेकिन यह मात्र उनका भ्रम है। प्रत्येक देवता सात्विक, राजस और तामस स्वरूप वाले होते है, किंतु ये स्वरूप उनके द्वारा भक्त के कार्यों की सिद्धि के लिए ही धारण किये जाते है। श्री कालभैरव इतने कृपालु एवं भक्तवत्सल है कि सामान्य स्मरण एवं स्तुति से ही प्रसन्न होकर भक्त के संकटों का तत्काल निवारण कर देते है।
हिन्दू देवी देवताओं में सिर्फ ऐसे दो देव माने जाते हैं जिनकी शक्ति का सामना कोई नहीं कर सकता । एक माँ काली और दूसरा भैरव देव।इसीलिए इनकी शक्ति साधना में प्रथम स्थान है।माँ काली के क्रोध को रोकने के लिए भगवान शिव ने बालक रूप धारण कर लिया था जो बटुक भैरव कहलाया और जो काल भैरव के बचपन का रूप माना जाता है। बटुक भैरव को काली पुत्र इसलिए कहा जाता है क्यूँकी ये शिव का रूप हैं और इन्होंने काली में ममता को जगाया था। काल भैरव के मुकाबले ये छोटे बच्चे हैं।इसीलिए इनमें ममत्व है जो माफ़ कर देते हैं लेकिन उग्र रूप के कारण ये रुष्ट बहुत जल्दी होते हैं। काल भैरव अकेले शांति में रहना पसंद करते हैं, बटुक भैरव भीड़ में।दोनों की भक्ति साधना बहुत जल्द फलदायी होती है। ये अतिवेगवान देव हैं।ये भक्ति के भूखे हैं।बटुक भैरव को ही गोरा भैरव कहा जाता है।
नाकोड़ा तीर्थ में विराजित भैरव
प.पू. गुरुदेव हिमाचल सुरिश्वर जी म.सा. तीर्थ का विकास एवं देखभाल की व्यवस्था में जुटे थे।एक दिन रात्रि के समय अपने उपाश्रय में पाट पर सो रहे थे। सुबह ब्रह्ममुहूर्त में एक छोटा सा बालक पाट के आसपास घूमता हुआ दिखाई दिया।गुरुदेव पाट पर बैठ गए। फिर बालक को बुलाया और पूछा," अरे बालक यहाँ क्यूँ घूमता है ? किसका है तू ?" उसी वक़्त वह बालक बोला," मैं यहाँ का क्षेत्रवासी भैरवदेव हूँ।आप महान आचार्य श्री हैं।आप इस तीर्थ का विकास करें। मैं आपके साथ हूँ।परन्तु मुझे भगवान पार्श्वनाथ जी के मंदिर में एक आले में विराजमान करो। ऐसा बोलकर भैरव जी अदृश्य हो गए। गुरुदेव विचार में पड़ गए। परमात्मा के मंदिर में भैरव जी को कैसे बिठाया जाए ? क्यूंकि भैरवजी को सिन्दूर, बलि, मदिरा आदि सब चढ़ते हैं।जैन मंदिर में यह सारी चीजों की बिलकुल अनुमति नहीं हैं। गुरुदेव दुविधा में पड़ गए की क्या करना? फिर एक दिन भैरव देव को जाग्रत करने के लिए साधना में बैठ गए। साधना पूर्ण होने पर भैरव देव प्रत्यक्ष हुए और कहा," बोलो गुरुदेव ?" गुरुदेव ने कहा," आपको हम मंदिर में विराजमान करेंगे परन्तु हमारे जैन धर्म के नियमों में प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। तब भैरव देव बोले," ठीक है, जो भी आप नियम बतायेंगे वो मैं स्वीकार करूँगा।" गुरुदेव बोले," आपको जो अभी वस्तुएं भोग रूप में चढ़ती हैं, वो सब बंद होंगी।आपको हम भोग रूप में मेवा, मिठाई कलाकंद तेल आदि चढ़ाएंगे।आपको जनेउ धारण करनी पड़ेगी। विधि विधान के साथ समकित धारण करवाकर आपको ब्रहामण रूप दिया जाएगा।
भैरवदेव बोले," मेरा रूप बनाओ।" " आपका रूप कैसे बनायें ?" तब भैरवदेव ने कहा कि जैसलमेर से पीला पत्थर मंगवाकर कमर तक धड़ बनाओ। नाकोड़ा जैन श्वेताम्बर समुदाय की अथाह जाँचच के पश्चात यह जानकारी मिली कि, गुरुदेव ने मुनीमजी भीमजी को जैसलमेर भेजा और वहां से पीला पत्थर मँगवाया। पत्थर भी इतना अच्छा निकला।सोमपुरा मूर्तिकार को बुलाकर मूर्ति का स्वरुप बताया। पिंडाकार स्वरुप को मुंह का स्वरुप देकर मुँह और धड़ को जोड़ा और अति सुन्दर मोहनीय भैरवजी की मूर्ति बनायीं। नयनाभिरम्य मूर्ति को देखकर सब खुश हो गए। सन्दर्भे समायोजनकर्ता श्री अक्षय जी जैन ने नाकोड़ा तोर्थ से जुड़े अनेक लोगो से चर्चाओ और जारी पत्रको पर आधारित होकर , वि.सं.1991 माघ शुक्ला तेरस गुरु पुष्ययोग में भैरवजी को विधि विधान के साथ नियमों से प्रतिबद्ध करके जनोउं धारण करवाकर शुभ वेला में पार्श्वनाथ प्रभु के मूल गम्भारे के बाहर गोखले में विराजमान किया गया। भैरवजी का स्थान खाली ना रहे इसलिए हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की। इस प्रकार नाकोड़ा तीर्थ के मूल गम्भारे में बटुक भैरव ( बाल स्वरुप) विराजित हैं।

जिनआज्ञा विरुद्ध कुछ लिखा गया हो तस्स मिच्छामी दुकद्म
लेखन -सन्दर्भ :-अक्षय जैन
राष्ट्रीय अध्यक्ष
श्री नाकोड़ा जैन कांफ्रेस
जय श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ
जय श्री नाकोड़ा भैरवनाथ

भैरव दर्शन

श्री नाकोड़ा मेवानगर तीर्थ


किदवंतियों के आधार पर श्री जैन श्वैताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ की प्राचीनता का उल्लेख महाभारत काल यानि भगवान श्री नेमीनाथ जी के समयकाल से जुड़ता है, किन्तु आधारभूत ऐतिहासिक प्रमाण से इसकी प्राचीनता वि. सं. 200-300 वर्ष पूर्व यानि 2200-2300 वर्ष पूर्व की मानी जा सकती है । श्री जैन श्वैताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ राजस्थान के उन प्राचीन जैन तीर्थों जो 2000 वर्ष से भी अधिक समय से इस क्षेत्र की खेड़पटन एवं महेवानगर की ऐतिहासिक समृद्धि एवं सांस्कृतिक धरोहर की श्रेष्ठता के प्रतीक है । महेवानगर ही पूर्व में वीरमपुर नगर के नाम से प्रसिद्ध था । वीरमसेन ने वीरमपुर तथा नाकोरसेन ने नाकोडा नगर बसाया था । आज भी बालोतरा- सीणधरी हाईवे पर नाकोडा ग्राम लूनी नदी के तट पर स्तिथ है, जिसके पास से ही इस तीर्थ के मूलनायक भगवान श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा प्राप्त हुई,जो यंहा प्रतिष्ठित की गई और तब से यह तीर्थ नकोडाजी के नाम से विश्व विख्यात है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा तीर्थ के संस्थापक आचार्य श्री जिन कीर्तिरत्न्सूरिजी द्वारा वि. स. 1502 में करवाई गई थी। यंहा की अन्य प्रतिमाओं में से कुछ सम्राट अशोक के पौत्र सम्प्रति राजा के काल की है व कुछ पर वि.स. 1090 व 1205 का उल्लेख हैं। ऐसा भी उल्लेख प्राप्त होता है कि सवंत् 1500 के आस-पास वीरमपुर मे 50 हजार की आबादी थी और ओसवाल जैन समाज के यंहा पर 2700 परिवार रहते थे। व्यापार एवं व्यवसाय की दृष्टि से वीरमपुर नगर (वर्तमान मे नाकोडा तीर्थ) इस क्षैत्र का प्रमुख केन्द्र रहा था।


श्री नाकोड़ा तीर्थ उज्जैन


नानाखेड़ा मनोकामनापूर्ण नाकोड़ा भैरव मन्दिर मध्यप्रदेश के सम्पूर्ण मालवा में आस्था के केंद्र उज्जैन नगर में नानाखेड़ा क्षेत्र में स्थित श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ जैनमंदिर में विराजित मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु, श्री आदिनाथ प्रभु ,श्री मुनि सुव्रतस्वामी प्रभु एवं अधिषठायक देव श्री नाकोड़ा भैरव देव तथा श्री पद्मावती माताजी।। परम उपकारी आचार्य श्री आनंदसागर सूरीश्वर जी महाराज सा.।। श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ जैन मंदिर की प्रतिष्ठा भैरव आराधक, उपासक श्री प्रकाशचंद जी सुराणा सा. को भैरवजी के आदेश पर जैनधर्मशास्त्र वाचक ध्यानमूर्ति साध्वी श्री विमालप्रभाश्री जी , प्रीतीधराश्रीजी एवं प्रीतीसुधाश्रीजी महाराजसाहिबा के सानिध्य में दिनांक 24/अप्रैल/2000 को हुई इस पावन अवसर पर भैरव प्रतिमा प्रतिष्ठा की घड़ी पर अचानक एक त्रिशूल भी स्वतः अवतरित हुआ। जो आज भी दर्शनार्थ भैरव जी की प्रतिमा के साथ हे। उक्त प्रतिष्ठावर्ष से प्रतिवर्ष पोषदशमी पर यहाँ 1008 पार्श्वनाथ प्रभु अभिषेक, रथयात्रा, हजारोहजार भैरव भक्तो का स्वामीवात्सल एवं प्रभु भक्ति का आयोजन निरंतर हो रहा है।।

स्वर्ण तीर्थ


स्वर्ण मंदिर ( "स्वर्ण मंदिर") रणकपुर (राजस्थान) के पास फालना में बनाया गया एक आधुनिक जैन मंदिर है। यह पहली बार है कि स्वर्ण मंदिर गिनती में बनाया गया है .. स्वर्ण मंदिर (स्वर्ण मंदिर), फालना, रणकपुर, राजस्थान की तरह पेज से समर्थन स्वर्ण मंदिर ( "स्वर्ण मंदिर") रणकपुर (राजस्थान) के पास फालना में बनाया गया एक आधुनिक जैन मंदिर है। यह पहली बार स्वर्ण मंदिर है कि देश में जैन समुदाय द्वारा बनाया गया है। श्री भैरोंसिंह शेखावत, उस समय भारत के उपराष्ट्रपति, 2004 में मंदिर का उद्घाटन किया और अन्य हस्तियों के साथ स्थापना के समारोहों में शामिल हुए। स्वर्ण मंदिर है, जो भी है जैन स्वर्ण मंदिर calles तीर्थ यात्रियों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। नाकोडा मेवानगर राजस्थान के भारतीय राज्य के बाड़मेर जिले में एक गांव है। गांव का नाम राजस्थान राज्य सरकार के रिकॉर्ड में मेवानगर है। [प्रशस्ति पत्र की जरूरत] इस गांव के इतिहास में अलग अलग समय पर नागर, विरामपुर और महेवा के नाम से जाना जाता था। जब नाकोडा पार्श्व जैन मंदिर बनाया गया था इस गांव नाकोडा के नाम से लोकप्रियता हासिल की। नाकोडा जैन का एक पवित्र स्थान है। मूलनायक कमल स्थिति में पार्श्व की एक लगभग 58 सेमी उच्च काले रंग की मूर्ति है।


चौमुखा जल तीर्थ


इस तीर्थ का प्राचीन नाम Virampur के रूप में उल्लेख किया है। Virsen और विक्रम युग की तीसरी शताब्दी के Nakorsen इस मंदिर का निर्माण और परम पावन जैन आचार्य मूर्ति स्थापित किया। समय के पाठ्यक्रम में, इस मंदिर में कई बार पुनर्निर्मित किया गया। जब विक्रम युग (1224 ईस्वी) के वर्ष 1280 में इस जगह पर आक्रमण किया, जैन संघ इस मूर्ति के संरक्षण के लिए गांव में तहखाने में छिपा रखा है। इस मंदिर को फिर से पंद्रहवीं सदी में पुनर्निर्मित किया गया। 120 मूर्तियों से यहां लाया गया और इस खूबसूरत और चमत्कारी मूर्ति विक्रम युग (1373 ईस्वी) के वर्ष 1429 में (मंदिर के मुख्य मूर्ति) के रूप में यहां स्थापित किया गया था। जैन आचार्य यहां मूर्ति भैरव स्थापित किया। इसके अलावा नाकोडा पार्श्वनाथ से अन्य जैन मंदिरों यहाँ और शांतिनाथ को समर्पित कर रहे हैं नाकोडा तीर्थ अपनी चमत्कारी जोखिम को रोकने शक्ति के कारण आम जनता के लिए पूजा का एक केंद्र है। नाकोडा को याद करने पर, भगवान जीवन बाधा से मुक्त और पक्की की राह बनाता है


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